भारत-नेपाल के बीच कालापानी-लिपुलेख विवाद।

 कहां है कालापानी?


कालापानी चीन, नेपाल और भारत की सीमा जहां मिलती है वह 372 वर्ग किलोमीटर का क्षेत्र है। भारत इसे उत्तराखंड का हिस्सा मानता है जबकि नेपाल इसे अपने नक्शे में दर्शाता है।

सुगौली समझौता क्या है?


नेपाल और ब्रिटिश इंडिया के बीच सुगौली समझौता साल 1816 में हुआ था। इसमें कालापानी इलाके से होकर बहने वाली महाकाली नदी भारत-नेपाल की सीमा मानी गई है। हालांकि, सर्वे करने वाले ब्रिटिश ऑफिसर ने बाद में नदी का उद्गम स्थल भी चिह्नित कर दिया था जिसमें कई स्थलों पर सहायक नदियां भी मिलती हैं। नेपाल का दावा है कि विवादित क्षेत्र के पश्चिमी क्षेत्र से गुजरने वाली जलधारा ही वास्तविक नदी है, इसलिए कालापानी नेपाल के इलाके में आता है। वहीं, भारत नदी का अलग उद्गम स्थल बताते हुए इस पर अपना दावा करता है।

क्यों महत्वपूर्ण है कालापानी ?


दरअसल, कालापानी इलाके का लिपुलेख दर्रा चीनी गतिविधियों पर नजर रखने के लिहाज से बेहद महत्वपूर्ण है। 1962 से ही कालापानी पर भारत की इंडो-तिब्बतन बॉर्डर पुलिस की पहरेदारी है।

वो 'कालापानी' क्या है, जिसे लेकर भारत से नाराज़ हो गया है नेपाल?

 नेपाल और भारत के सम्बन्ध  -


भारत के रिश्ते हमेशा से ही  नेपाल के साथ बहुत अच्छे रहे हैं लेकिन हाल ही के दिनों में देखा गया है कि नेपाल और भारत के रिश्तो में थोड़ी सी खटास आई है, जिसकी वजह भारत और नेपाल के बीच जमीनी विवाद है, लेकिन नेपाल का इस कोरोनावायरस के समय में इस तरह से बघेड़ा  खड़ा करने का मुख्य कारण चाइना को सीधे तौर पर ठहराया जा सकता है । जब  से चाइना और नेपाल का गठजोड़ मजबूत हुआ है, तब से नेपाल, भारत से लगातार दूरी बनाता जा रहा है।भारत और नेपाल के रिश्ते में कड़वाहट की वजह यह भी है कि चाइना ने नेपाल की राजनीति को अपने हाथ में ले लिया है और चाइना नेपाल के ऊपर अपना दबदबा लगातार बनाता जा रहा है। नेपाल में हाल ही के दिन में कुछ राजनीतिक संकट आए थे, जिनको चीन ने अपने नेपाल के एम्बेसडर (हो यानिकी) के द्वारा सीधे दख़ल देकर सुलझाने में मदद की और श्री ओली की सरकार गिरने से बच पाई।

कहां से शुरू हुआ विवाद -


दरअसल भारत ने उत्तराखंड में लिपुलेख दर्रा के पास से कैलाश मानसरोवर को जाने के लिए एक 80 किलोमीटर की रोड का निर्माण किया है, यह वही क्षेत्र है जिसकी दावेदारी नेपाल भी करता है ।  इसके बाद ओली जी ने यह बयान दिया कि इस प्रकार की सड़कों का निर्माण उनकी देश की एकता के खिलाफ है । यहीं पर श्री ओली नहीं रुकते इसके अगले दिन श्री ओली जी अपनी संसद में एक बयान देते हैं और कहते हैं कि कोरोनावायरस से भी बड़ा खतरा भारत है क्योंकि यह वायरस नेपाल में भारत से ही फैल रहा है, और इसके अगले ही दिन नेपाल की सरकार ने अपने देश का संशोधित नक्शा जारी किया, जिसमें  वह लिपुलेख दर्रा सहित उत्तराखंड के कुछ भूभाग को अपने देश का हिस्सा बताया। इसकी प्रतिक्रिया में भारत की ओर से  इस नक्शे का खंडन किया गया और इसे गलत बताया गया। 

इस नक्शे को जारी करने से पहले नेपाल अपने देश की सेना को भी बॉर्डर पर लिपुलेख दर्रा के पास भेजा और इसके बाद भारत और नेपाल के सेना में थोड़ी सी तनातनी महसूस किया गया।

फिलहाल नेपाल चाइना के साथ भारत के विरोध में आ गया है और चीन के इसारे पर  भारत के खिलाफ बोलने लगा है ।
दरअसल  कालापानी इलाका और लिपुलेख दर्रा चीनी गतिविधियों पर नजर रखने के लिहाज से बेहद महत्वपूर्ण है। इसी बात से चीन को भारत से समस्या है।इसके अलावा चाइना कोरोनावायरस के मसले को भी दबाने की कोशिश कर रहा है और यह इसी का हिस्सा है, ताकि पूरी दुनिया अलग अलग मसलों पर बात करने लगे और कोरोावायरस का मामला हल्का हो जाए।

भारत हमेशा से नेपाल को हर प्रकार से संभव मदद करने के लिए तत्पर रहा है, हाल ही में भारत ने नेपाल को हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्विन दवा भी कोरोनावायरस जैसी महामारी से निपटने के लिए नेपाल को मुहैया कराई और इन दवाओं का कोई भी पैसा नहीं लिया, इसके बावजूद नेपाल ने इस महामारी के खत्म होने का इंतजार करना सही नहीं समझा और भारत से लगातार रिश्ते खराब कर रहा है। नेपाल को भारत की इस मुश्किल समय में बहुत आवश्यकता है इसके बावजूद नेपाल समझ नहीं पा रहा।

नेपाल के राजनेता अपने निजी मतलब के लिए भारत जैसे देश को भी किनारे करने से पीछे नहीं हट रहे, जबकि यह बात सबको पता है कि चीन कभी किसी भी देश का नहीं हो सकता वह सिर्फ अपने मतलब के बारे में सोचता और करता है । नेपाल को चीन की चालाकी के बारे में गहन अध्ययन करने की जरूरत है अन्यथा परिणाम बुरे हो सकते है।


चीन की फूट डालो राज करो नीति-


हम इस बात से इंकार नहीं कर सकते कि फूट डालो और राज करो की नीति हमेशा से  कारगर सिद्ध हुई है, इससे पहले भी इस नीति का प्रयोग करके  ब्रिटेन ने जाति और  धर्म को आधार बना कर भारत में  फूट डाला और लगभग 250 साल तक भारत पर राज किया।

चीन इस  मामले में  ब्रिटेन से कई हाथ आगे है, वह जाति, धर्म के बीच फूट नहीं डालता बल्कि दो देशों के बीच में फूट डालकर राज करने की कोशिश करता है। जिसमे वह कई बार कामयाब भी हुआ है। इसके परिणाम का भुगतान वह देश करते हैं जो चाइना की चाल में फस जाते है। चाइना की यह चाल भारत पर तो काम नहीं कर रही परन्तु  भारत के पडोसी देशो पर बहुत ही कारगर सिद्ध हो रही है , और इसका प्रत्यक्ष उदाहरण पाकिस्तान है। इससे पहले श्री लंका , मालदीव, म्यांमार व् अन्य भारत के पडोसी इसका प्रत्यक्ष उदाहरण बन चुके है। इन सभी देशो की स्थिति अब किसी से भी छुपी नहीं है, ये सभी देश चीन के कर्ज के नीचे दबे हुए है जिसका फायदा  चीन उठता आ रहा है। 

नेपाल को इस बात को समझना चाहिए कि अपने थोड़े दिन की राजनीति के लिए अपने पुरे देश को कितने बड़े संकट में डाल रहा है। नेपाल को भारत जैसे देश से  हमेशा दोस्ती बनाए रखना चाहिए। नेपाल के लोगो को भी इस बारे में सोचने की जरुरत है कि किस प्रकार चीन नेपाल के चंद लोगो का समर्थन प्राप्त कर इतने बड़े देश को हथियाने के बारे में सोंच रहा है। चाइना इसी बीच नेपाल के लिए उदाहरण प्रस्तुत करते हुए माउंट एवरेस्ट पर अपने 5 जी टॉवर लगा था है तथा तिब्बत से एवरेस्ट जाने के रास्ते को बनाने की कोशिश कर रहा है। फिलहाल एवरेस्ट तक जाने के लिए नेपाल से ही जाना पड़ता है।
चीन  सिर्फ और सिर्फ अपने बारे में ही सोचता है और क इसका उदाहरण होन्ग कॉन्ग व ताइवान है , जहां वह लगातार अत्याचार कर रहा है । यहां तक कि वह अपने ही देश के नागरिकों की भी परवाह नहीं करता । चीन की  फूट डालने की राजनीति का ही परिणाम था कि भारत के कई साल से श्रीलंका व मालदीव से रिश्ते बिगड़े हुए थे। अंततः वहां नई  सरकार आने के बाद ही भारत से इन दोनों देशों के रिश्ते अच्छे हो पाए। इसके अलावा जहा चीन के निवेश को सभी य यूरोपीय , अमेरिकी ,और अफ़्रीकी देश प्रतिबंधित तथा नियंत्रित कर रहे है वही नेपाल में वह अपना निवेश बढ़ता जा रहा है। चीन के द्वारा चाइना से नेपाल के लिए सड़कें और ट्रेन की व्यवस्था की जा रही है और उसको यह लालच दिया जा रहा है कि इससे आपके देश का विकास होगा, लेकिन नेपाल इस बात को नहीं समझ पा रहा है कि जितने खर्चे में वह उस रोड और ट्रेन को बना रहा है वह उसके ऊपर बहुत बड़ा कर्ज देकर जाएगा।

 भारत और चीन के सम्बन्ध 

भारत और चीन के रिश्ते हमेशा से बहुत ही अच्छे नहीं रहे हैं लेकिन व्यापार के मामले में दोनों देश  काफी आगे है। जिसका सीधे तौर पर फायदा चाइना को ही  होता है। लेकिात से भी चिंतित रहता है की भारत जी तरह से विकास कर रहा है वह उसके लिए बहुत ही खतरे की बात है परन्तु भारत कभी भी ऐसी सोंच नहीं रखता है। यह बात बिलकुल सच है की चीन को अगर कोई देश एशिया में टक्कर दे रहा है तो वह भारत ही है, क्योको भारत चीन से किसी भी मामले में कमजोर नहीं है; इसी बात का दर चीन को रात दिन सताता है। 

हाल ही के दिनों में चाइना ने अरुणांचल प्रदेश में सैनिकों को भेज दिया  भारत-चीन के  सैनिको में  झड़प हुई जिसमे चीन के लगभग 10 से 12 सैनिक  गंभीर रूप से घायल हुए वही भारत के 2 से 3 सैनिक  घायल हुए।  इसके अलावा चाइना के बहुत सारे सैनिको को छोटे भी आई। 

इस झड़प के 2 -3  बाद चाइना ने अपने हेलीकॉप्टर को लद्दाख में LAC के पास भेज दिया इसको देखते हुए भारत ने अपने लड़ाकू विमान सुखोई को भेज दिया जिसके बाद चीनी सेना के हेलीकॉप्टर वापस  चीन भाग गए। इन सभी स्थितियों को देखते हुए भारत ने भी अनेक कड़े कदम उठाए है जैसे ताइवान को सपोर्ट करना व चीन के उसी के भाषा में सीमा पर  जवाब देना। लेकिन यह काफी नहीं है भारत को और भी  कड़े कदम उठाने की जरूरत है।

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