विघ्न हरण संकट हरण, आपै ही शक्ति विनाशक।
आपै तीनों लोक हो, आप ही श्रृष्टि के शासक ।।
व्यर्थ को भी आपे देखत, आपै करते सार्थक।
युग से युग तक आप ही, आप ही मेरे प्रशासक।।
मन में मेरे आप ही आवै, मन के क्रम में आप को पवई।
दुख के दिन भी आप को चाहा, सुख में ध्यावा आपको पावा।।
सृष्टि के रक्षक दुख के भच्छक,आप ही मेरे मन को भावत।
हर दुख में तुमको ही ध्यावत, दीन दयाल भी आपको गावत।।
सही कर्म और धर्म से, आपको हर दिन ध्यान लगाएं।
आप मेरे धर्म–कर्म को, आपै मेरे प्राण बचाएं।।
आपही नीलकंठ श्री, आप ही रूप रुद्रावतार।
आओ हमरी दुनिया में, सफल करो संसार।।
आपके दर्शन सपने में भी, आशीर्वाद समान।
आती जाती इस दुनिया में, देते दीन ईमान।।

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